Monday, December 22, 2014

मौत

मौत से मुलाक़ात ज़रूरी है

पर अभी हुमारे दरमियाँ कुछ दूरी है|

यह फ़ासला किसी के जीने की आस है

लेकिन हमें फ़ासले मिटने का एहसास है |



क्या भला कोई ऐसे ख्वाब भी बोता है ?

मिट्टी का शरीर मिट्टी से मिलने को रोता है !

काया जिसने यह बनाई थी,

उसी काया को मिटाने, मौत आज आई है |



देखो आज इन प्रियजनों को,

ख़ौफ़ का साया बिछाया है मौत ने|

वक़्त थम जाने को बेकरार मौत वो

नास्तिक भी आज ईश्वार से  दो घड़ी माँगने |



जीवन काँटों की सेज पर खिला एक फूल है

जहाँ दोस्त तो दुश्मन भी अनेक है |

जहाँ मौत अपनो को काँटे चुबा रही है ,

और गैरो की राह फूल बिछा रही है |



आँखे बंद कर यह सोचती हूँ,

क्यूँ डरूँ मैं भला मौत से?

हमसफर मौत ने मुझे कभी तो चुनना ही था

भला कैसे यह सत्य ठुकराऊ मैं?



कुंठित है मन इस बात से

ना जाने कितने तीर मैने चुबोये,

आज आख़री पड़ाव पर खड़े

उनसे क्षमा भी माँग ना सके |



वो देखो… मौत मुस्कुराती सी,

सीने से लगाने मुझे, अपनी बाह है फैलाती |

निरुत्तर सी मैं खड़ी,

छोड़ अपनो का हाथ, मौत मुझे आज है थामती |



सन्नाटा फैला चारो ओर है ,

नम कुछ आँखें, खुश कुछ लोग है|

मैं दुनिया छोड़ जा रही हूँ,

मौत के बाद एक नये संसार ढूढ़ने ||

Saturday, June 14, 2014


है दर्द सीने में छुपा, कभी तो उसको टटोलिए
है चार दिन की ज़िंदगी, अब तो मीठे बोल बोलिए।

राह हम ने चुनी थी,साथ उस पे चल दिए
चार पल तो साथ थे, अब बदल गये रास्ते।
है साथ तो जीना मगर, फिर क्यूँ भला मुहं फेरिए,
है चार दिन की ज़िंदगी, फिर साथ हमारे चल दीजिए।

महक रहा आँगन है आज, कली नई जो खिल गई,
उसकी हर मुस्कान, हमारे जीने का सबब बन गई।
कली जो फूल बन गयी, काँटे भी साथ लग गये,
दर्द काँटों का झेलिए, कली से मुहँ ना मोड़िये।

दोस्ती की राह पर, चलना सभी है जानते,
वक़्त आने पर यार को, अक्सर हम है भूल जाते।
जनाज़ा सभी का निकलना है, चार काँधे खोजिये
वक़्त आने पर लगे, तो दोस्त पे जान अपनी दीजिए।

फैला चारों तरफ धुआँ सा है, गुम हम उसमें हो लिए
गमगीन ज़िंदगी हुई, बेरंग नज़ारे हो गये
निकल बाहर इस धुएँ से तू, जंग का एलान कीजिए
बाहार फिर छा जाएगी, बस आप हिम्मत ना हारिए।

मौत आनी ज़रूर है, फिर क्यूँ उस से डर रहे,
जाने से पहले हो सके, तो कुछ काम ऐसा कीजिए।
याद अपने किया करे, परायें भी रो पड़े,
ज़िंदगी के रहते मुस्कान सबको दीजिए।
है चार दिन की ज़िंदगी, सदैव मीठे बोल बोलिए।।

Friday, June 6, 2014

क्या होती है आशा

                                                         सन 2005 की रचना

क्या होती है आशा?
कोई तो बता दे मुझे उसकी परिभाषा।
फूल को माली से आशा,
दे उसे पानी इतना,
कि खिलकर दूर करे वो लोगों की निराशा।

क्या होती है आशा?
दोस्तों को दोस्तों से आशा,
हर कदम पर साथ दे,
हर राह पर हमें जो हंसाता।

क्या होती है आशा?
माँ बाप को बच्चों से है आशा।
पढ़े लिखें बड़े बने,
उनके बूढ़े कंधों को जवाँ कांधों की अभिलाषा।

क्या होती है आशा?
दिए को बाती से आशा।
कि वो जले तपे,
संसार को रोशनी दे, तम को दूर करें।

क्या होती है आशा?
प्यार को प्यार की आशा,
दिल को धड़कने की आशा,
फूल को खिलने की आशा,
ख़ुशी को बसने की आशा।

हाँ, ये होती है आशा,
ज़िन्दगी को ज़िन्दगी से है आशा,
पतझड़ को बहार की आशा,
अन्धकार को रौशनी से है आशा,
प्यासे को कुऐं की आशा,
आज को कल से है आशा।

क्या होता ना होती अगर ये आशा?
चारों तरफ़ होती सिर्फ निराशा।
कोशिश करें पूरी करें हम हर आशा,
क्यूंकि इंसान को इंसान से है आशा।
आशा है इंसानियत की, प्यार की, अपनेपन की।
जी हाँ, यही है मेरी आशा।।

Thursday, June 5, 2014

क्या खोया क्या पाया

                                            दिनांक- 17 अक्टूबर 2013


यादों के झरोखों में झाँक कर देखा
बीते पलों को टटोल कर देखा
खाली वक़्त में बीते समय का हिसाब लगाया
ना जाने क्या छोड़ा, क्या पाया


कभी यारों के झुंड में शामिल थे
हर दिन का आना जाना था
जगह बदली, वक़्त बदला
आज उस झुंड का नामो निशान नही।
यारों को छोड़ा, नये साथियों को पाया।।


कभी उस जगह पे खेला करते थे
वहाँ टहला करते लोगों को निहारते थे
जो अपनी सी लगती थी,आज उस जगह पे अपने निशाँ नहीं।
उस जगह को छोड़ा, एक नया रास्ता अपनाया।


कभी चिट्ठी लिख करके, हाल पूछते थे
अपनो का पता लिख लिया करते थे
एक बार मिलने की आस को जगा कर रखते थे
आज उस कलम काग़ज़ का, उस पते का पता नही
उस कलम को छोड़ा, नई तक्निकिओं को अपनाया।


वक़्त आगे बढ़ना सिखाता हैं, फैसला हम करते है
पीछे रह जाती है यादें, जिन्हे भुला हम देते है
फ़ुर्सत में बैठे हो अगर, तो याद गुज़रे वक़्त को करते है
व्यस्त हो जीवन में तो, खुद को ही भुला देते है ।।

Tuesday, June 3, 2014

कोई मेरे दिल से पूछे,पाकर खोने का ग़म क्या होता है
कोई दिए से पूछे, जलकर बुझ जाने का ग़म क्या होता है
रोशन कर दुनिया, खुद जल जाने का ग़म क्या होता है
कोई मैख़ाने से पूछे, पैमाने से छलकने का ग़म क्या होता है
कोई शमा से पूछे, परवाने के जल जाने का ग़म क्या होता है।

हम किसी से क्या पूछे, कोई पूछने का वक़्त भी नहीं देता
जिंदगी रेत की तरह फ़िसल जाती है हाथों से
और कोई हमें सांस लेने भी नहीं देता।
न जाने किस दल दल में फंसे है,
कि जालिम ज़माना हमे गिला करने भी नहीं देता।

थक जाते है कठिनाइयों से लड़ते लड़ते
पर न जाने क्यों, कोई अजनबी मदद करता है
अब अँधेरे में भी दिखाई देता है।
अब गिला क्या करे, तू गिला करने भी नहीं देता
चाहते तो है की मौत का दामन थाम ले,
पर तू है की मरने भी नहीं देता।

ऐ खुदा मेरे,ना दे ख़ुशी हमें तो कोई ग़म नहीं
पर याद रख, ये आँखें नाम ना हो कभी
माना तेरे चाहने वाले है कई
पर इस फ़क़ीर के लिए तेरी चाहत कम न हो कभी।।

                                                          2009 की रचना....

Friday, May 23, 2014

चाहत

क्या चाह है, क्या इरादा
नहीं मुझको है पता
चल रही हूँ राह पर,
कि आज मुझको कोई मिला।

जानकार भी अनजान है,
मेरी वो पहचान है
लेकिन खुद पर अभिमान है
चाहता सम्मान है।
ये अनजान कोई और नहीं
मेरी ही परछाई है।

चाहतों का सिलसिला है,
है डगर मुश्किल बड़ी
चाह की कुछ पाने की
कुछ का गुज़रने की,
ज़माने को अपना बनाने की।
चाह मेरी धुंआ हो गई
आसमां में कहीं खो गई।

इस संसार में कोई अपना नहीं,
कोई पराया नहीं
किसी को किसी की परवाह नहीं,
कोई मेरा नहीं, कोई तुम्हारा नहीं।

राह सबकी अलग है
राही भी अलग अलग है
सोचने का ढंग अलग है
व्यवहार में भिन्नता है,
लेकिन दिखावटी एकता है।

उमीदें फिर भी बंधी है
अपनों से, परायों से
दोस्तों से,बेगानों से।
कब वो दिन आएगा
जब मेरा सपना सच होगा-
      की हम सब साथ हो
      एक ही राह हो
      दिलों में प्यार हो
      हाथों में हाथ हो
खुद पर आत्मविशास हो
लेकिन सर्वप्रथम, इश्वर हमारे साथ हो।


                                              (  2004 की रचना .........)


       


                

Thursday, May 15, 2014

फ़िज़ूल की बातें

गुज़रा पल,कभी आज ,तो कभी कल को हम रोया करते है
अक्सर यारों के साथ बैठकर, फ़िज़ूल की बातें किया करते है

किसी के दुपट्टे का रंग, किसी के बदले ढंग
किसी की रेशमी जुल्फें, किसी की पतली कमर
अक्सर हसीनों को हम ढूंढा किया करते है
कुंवारे अक्सर ऐसी फ़िज़ूल सी बातें किया करते हैै

आदतों से मजबूर है कुछ लोग
दूसरों के घर जो झाँका करते है
खुशियाँ उनकी, गम में बदलने को ये अक्सर तरसा करते है
कभी रिश्ते तो कभी शुभचिंतक की आड़ में, फ़िज़ूल की बातें किया करते है

अफसरों की बुराई, उनकी झूठी तारीफें
उनकी चर्चा किया करते है
आज खुद उस मकाम पे खड़े है, किसी के निशाने पर रहा करते है
इस तरह अफसर हो या कर्मचारी, यूं ही फ़िज़ूल की बातें किया करते है

खाली दिमाग अलग ही दिशा का मोड़ लेता है
प्यार नहीं कटाक्ष ही किया करता है
उम्र का तकाज़ा नहीं, ये आदतों की मजबूरी होती है
ऐसे लोग न चाहकर भी फ़िज़ूल की बातें की करते है

मोदी हो या अडवाणी, सचिन हो या सौरव गांगूली,चर्चा इनकी सभी किया करते है
जानकारी हो न हो, टिपण्णी सभी दिया करते है
इतना प्यार है इनसे, झगड़ा इनके लिए हर किसी से किया करते है
कोई भी जगह हो, लोग यूं फ़िज़ूल की बातें किया करते है

Thursday, May 8, 2014

मैं एक कील से बंधा एक छोटा सा घर हूँ
आपके रोज़मर्रा के जीवन का अभिन्न अंग हूँ
है एक नाला मेरे घर के नीचे
बिना सीढ़ी के ही काम चलता शाम सवेरे

हरा भरा घर है मेरा
ताऊ फूफा चाचा सब ने डाला है डेरा
अक्सर महीने के अंत में कोई जाता है
पर तुम्हारे रहते नया रिश्तेदार आ जाता है

आओ परिचय अपने परिवार का देता हूँ
सच मानो, तुम्हारे बिना मैं बिलकुल अकेला हूँ

छोटो से शुरुवात हम करते हैं
ये अकेले तो कभी झुण्ड में रहते हैं
इनकी प्रसिद्धि इनके बालों से है
बाकी तो लकड़ी सा शरीर तुम्हारे हाथों में हैं
बूझो कौन हूँ मैं
अरे भाई तुम्हारा अपना toothbrush हूँ मैं

चलिए अब ज़रूरी चीज़ से मिले
इनके बिना भला आप क्या करें
कमर इनकी नाप के न लो
घाटे का सौदा पड़ेगा, इन्हें ज़रा सोच के लो
ना जाने क्या आतंक यह मचाते है
जब देखो शत्रुओं से भिड जाते हैं
शत्रु एक नहीं बतीस है इनके
ज़रा संभलना कुरुक्षेत्र में खड़े है ये
बूझो कौन है ये
अरे भाई तुम्हारा अपना toothpaste है ये

पुरुष प्रधान देश में हम रहते है
पुरुषो को भला कैसे भूल सकते है
अब बारी तलवार की धार की है
जो डंके की चोट पे रखती हमारे पुरुषों को है
बड़े बड़े मैदान को वीरान कर देती है
इस कला से ये सबको हैरान कर देती है
बूझो कौन है ये
हे पुरुष...तुम्हारा gillete blade ह येै

इनके अजब गजब साथी है ये
जो राह में बादल बिछा देते है ये
अब क्या बूझो के तुम
तुम्हारे shaving brush है सनम
जो मख्खन की तरह, shaving cream लगाते सनम

नारी शक्ति का बोल बाला यहाँ भी है
जिनसे डरना आपका काम है
यूँ तो बड़ी मददगार होती है ये
पर मचल जाए तो खून बहा दी है ये बूझो कौन है ये
अरी बहना.. तुम्हारा nailkatar है ये

बसाया इस घर को तुमने है
हम जिसमें साथ साथ रहते है
जाना हर महीने हमारा ज़रूरी है
पर नया लाके बदलना यह भी तुम्हे ज़रूरी है

Thursday, May 1, 2014

कल की चिंता


 दो पल खुशी खड़ी थी मेरे पास
मैं ना जाने कल के खयालों में खोई थी आज
ना जाने डूबी थी किस गहरी चिंता में
लो बीत गया दिन, इसी उधेड़बुन में

आज तुम साथ हो मेरे, क्या और चाहिए अब मुझे
फिर क्यूँ खो गये हो खुद में इतना, कुछ ना कहना अब मुझे
सोचा बीत जाए ये पल, कल पे छोड़ा तुम्हे
आज रूठ बैठी थी में, कल माना लूँगी तुम्हे
मेरी आँख के तारे, मेरे लिए जो है प्यारे
मुस्कुरातें और बहलातें मुझे
फँसी हूँ आज किस मज़धार में
कल देख लूँगी उन्हें प्यार से
दिल के अरमान कई है, जानती हूँ मैं
कभी पूरे किए थे, ऐसा एहसास है मुझे
वक़्त पीछे छोड़ चुकी हूँ, आगे बढ़ने के लिए
अरमानो का हार, अब नही दिखता मुझे


कल की सोच कल का डर, ख़त्म कर रहा है आज को
कल के लिए खो रहे है, हम आज अपनी राह को
ज़िंदग़ी कब तक चलेगी क्या पता किसी को
तो क्यूँ सोचे इतना, दूर करे कल की चिंता को

क्यूँ ना हम आज नई राह अपनाए
कल की तलाश में आज को क्यूँ ठुकराऐ
जीना तो है ही अगर
फिर क्यूँ कल के लिए आज हम नीर बहाएँ

खुशियाँ बांटते चलो

खुश रहो खुशियाँ बांटते चलो, चार दिन है जीना खुशियाँ लुटाते चलो



किसी के अश्रु, किसी की सिसक

किसी का दर्द, किसी की नम है पलक

समझो उन्हें, आँसू उनके मिटाते चलो

खुश रहो खुशियाँ बांटते चलो, चार दिन है जीना खुशियाँ लुटाते चलो

किसी का आक्रोश, उसी का मलिन मन

उसके निशाने पे, तुम्हारा तन

मनमुटाव भुलाओ, मलिनता मिटाते चलो

खुश रहो खुशियाँ बांटते चलो, चार दिन है जीना खुशियाँ लुटाते चलो

अपनों का प्यार, बदला आज समाँ है

प्यार नफ़रत का मोड़ ले रहा है

रोको उन्हें, ना रुकें तो क्षमा कर दो उन्हें

खुश रहो खुशियाँ बांटते चलो, चार दिन है जीना खुशियाँ लुटाते चलो

कर्म करते रहो, लोगों को हँसातें रहो

खुशियाँ किसी की भी भी हो, खुश हमेशा रहा करो

क्लेश द्वेष नफ़रत से कुछ ना हासिल होता है

किए गये दुष्कर्मों का असर इसी जीवन में ज़रूर होता है



प्यार को परिभाषित ना करो, बस बाँटते चलो

दुनिया कैसी भी हो, खूबसूरत इसे बनाते चलो



खुश रहो खुशियाँ बांटते चलो, चार दिन है जीना खुशियाँ लुटाते चलो