Tuesday, June 3, 2014

कोई मेरे दिल से पूछे,पाकर खोने का ग़म क्या होता है
कोई दिए से पूछे, जलकर बुझ जाने का ग़म क्या होता है
रोशन कर दुनिया, खुद जल जाने का ग़म क्या होता है
कोई मैख़ाने से पूछे, पैमाने से छलकने का ग़म क्या होता है
कोई शमा से पूछे, परवाने के जल जाने का ग़म क्या होता है।

हम किसी से क्या पूछे, कोई पूछने का वक़्त भी नहीं देता
जिंदगी रेत की तरह फ़िसल जाती है हाथों से
और कोई हमें सांस लेने भी नहीं देता।
न जाने किस दल दल में फंसे है,
कि जालिम ज़माना हमे गिला करने भी नहीं देता।

थक जाते है कठिनाइयों से लड़ते लड़ते
पर न जाने क्यों, कोई अजनबी मदद करता है
अब अँधेरे में भी दिखाई देता है।
अब गिला क्या करे, तू गिला करने भी नहीं देता
चाहते तो है की मौत का दामन थाम ले,
पर तू है की मरने भी नहीं देता।

ऐ खुदा मेरे,ना दे ख़ुशी हमें तो कोई ग़म नहीं
पर याद रख, ये आँखें नाम ना हो कभी
माना तेरे चाहने वाले है कई
पर इस फ़क़ीर के लिए तेरी चाहत कम न हो कभी।।

                                                          2009 की रचना....

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