Friday, April 22, 2011

ज़िन्दगी एक अधूरी किताब है …..
पन्ने उसके वक़्त की स्याही से लिखे जातें है ,
कुछ इतने गहरे की छाप छोड़ जातें है ,
और कुछ वक़्त के साथ धुंधले पड़ जातें है .

कुछ पन्ने ऐसे होते है , जिन्हें याद कर हम मुस्कुराते है ,
जिनके सहारे हम मुश्किल वक़्त भी आसानी से जी लेते है .
कुछ पन्ने ऐसे होते है , जो अनकहे रिश्तों का अहसास करातें है ,
नहीं नाम उन रिश्तों का , पर यादों में अक्सर वो आते है ।

कुछ पन्ने ऐसे होते है , जो सिर्फ लिखने वाले के होते है ,
जिसपर किसी का हक़ नहीं होता , जिससे हर कोई अनजान होता है ।

ज़िन्दगी रहते कोई किताब पूरी नहीं होती ,
गुज़रा वक़्त ही दास्तान लिखता है ,
आने वाला कल सिर्फ इंतज़ार करता है ,
उस अधूरी किताब के पूरे होने का .

जिस दिन किताब पूरी होगी ,
अंत होगा उस लेखक के जीवन का ,
जीवित रहेगी - तो सिर्फ खट्टी मिट्ठी यादें ,
और उन यादों के रूप में - वो किताब .

Saturday, April 2, 2011

बिल्ली मौसी

बिल्ली मौसी देखो प्यारो कितनी है प्यारी
आने से पहले पर्मिसिओं लेकर ही अन्दर आती
आती है तो सबकुछ उल्टापुल्टा करके जाती
बनता हुआ काम बिगाड़ कर इठलाकर चली जाती

उसकी दो चमकीली आँखें कितनी है प्यारी
लेकिन अन्धेरें में हमको इससे है डराती
काली बिल्ली, सफ़ेद बिल्ली, जैसी भी हो बिल्ली
बिल्ली तो बिल्ली होती है, न वो सगी किसी की


म्याऊँ म्याऊँ करके वो पूछे - क्या मैं अन्दर आ जाऊं
आने के बाद वो चाहे अब मैं सबकुछ खा जाऊं
खाने के बाद वो चाहे अब मैं उसे पाचाऊँ
पचने के बाद वो चाहे जल्दी से सो जाओं

चूहे को देखे तो बिल्ली उसके पीछे भागे
दौड़े भागे उसके पीछे लेकिन पकड न पाए
पकड़ में आ जाये अगर तो उसको फिर खा जाये
खाने के बाद वो चाहे जल्दी से सो जाए


दबे पाँव वो आती है, दबे पाँव चली जाती
परेशां वो हरदम करती फिर भी सबको प्यारी
कोई उससे डरे, कोई उसे पुचकारे
लेकिन जग में प्यारो वो सबकी मौसी कहलाए