Thursday, May 1, 2014

खुशियाँ बांटते चलो

खुश रहो खुशियाँ बांटते चलो, चार दिन है जीना खुशियाँ लुटाते चलो



किसी के अश्रु, किसी की सिसक

किसी का दर्द, किसी की नम है पलक

समझो उन्हें, आँसू उनके मिटाते चलो

खुश रहो खुशियाँ बांटते चलो, चार दिन है जीना खुशियाँ लुटाते चलो

किसी का आक्रोश, उसी का मलिन मन

उसके निशाने पे, तुम्हारा तन

मनमुटाव भुलाओ, मलिनता मिटाते चलो

खुश रहो खुशियाँ बांटते चलो, चार दिन है जीना खुशियाँ लुटाते चलो

अपनों का प्यार, बदला आज समाँ है

प्यार नफ़रत का मोड़ ले रहा है

रोको उन्हें, ना रुकें तो क्षमा कर दो उन्हें

खुश रहो खुशियाँ बांटते चलो, चार दिन है जीना खुशियाँ लुटाते चलो

कर्म करते रहो, लोगों को हँसातें रहो

खुशियाँ किसी की भी भी हो, खुश हमेशा रहा करो

क्लेश द्वेष नफ़रत से कुछ ना हासिल होता है

किए गये दुष्कर्मों का असर इसी जीवन में ज़रूर होता है



प्यार को परिभाषित ना करो, बस बाँटते चलो

दुनिया कैसी भी हो, खूबसूरत इसे बनाते चलो



खुश रहो खुशियाँ बांटते चलो, चार दिन है जीना खुशियाँ लुटाते चलो

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