Thursday, May 15, 2014

फ़िज़ूल की बातें

गुज़रा पल,कभी आज ,तो कभी कल को हम रोया करते है
अक्सर यारों के साथ बैठकर, फ़िज़ूल की बातें किया करते है

किसी के दुपट्टे का रंग, किसी के बदले ढंग
किसी की रेशमी जुल्फें, किसी की पतली कमर
अक्सर हसीनों को हम ढूंढा किया करते है
कुंवारे अक्सर ऐसी फ़िज़ूल सी बातें किया करते हैै

आदतों से मजबूर है कुछ लोग
दूसरों के घर जो झाँका करते है
खुशियाँ उनकी, गम में बदलने को ये अक्सर तरसा करते है
कभी रिश्ते तो कभी शुभचिंतक की आड़ में, फ़िज़ूल की बातें किया करते है

अफसरों की बुराई, उनकी झूठी तारीफें
उनकी चर्चा किया करते है
आज खुद उस मकाम पे खड़े है, किसी के निशाने पर रहा करते है
इस तरह अफसर हो या कर्मचारी, यूं ही फ़िज़ूल की बातें किया करते है

खाली दिमाग अलग ही दिशा का मोड़ लेता है
प्यार नहीं कटाक्ष ही किया करता है
उम्र का तकाज़ा नहीं, ये आदतों की मजबूरी होती है
ऐसे लोग न चाहकर भी फ़िज़ूल की बातें की करते है

मोदी हो या अडवाणी, सचिन हो या सौरव गांगूली,चर्चा इनकी सभी किया करते है
जानकारी हो न हो, टिपण्णी सभी दिया करते है
इतना प्यार है इनसे, झगड़ा इनके लिए हर किसी से किया करते है
कोई भी जगह हो, लोग यूं फ़िज़ूल की बातें किया करते है

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