मौत से मुलाक़ात ज़रूरी है
पर अभी हुमारे दरमियाँ कुछ दूरी है|
यह फ़ासला किसी के जीने की आस है
लेकिन हमें फ़ासले मिटने का एहसास है |
क्या भला कोई ऐसे ख्वाब भी बोता है ?
मिट्टी का शरीर मिट्टी से मिलने को रोता है !
काया जिसने यह बनाई थी,
उसी काया को मिटाने, मौत आज आई है |
देखो आज इन प्रियजनों को,
ख़ौफ़ का साया बिछाया है मौत ने|
वक़्त थम जाने को बेकरार मौत वो
नास्तिक भी आज ईश्वार से दो घड़ी माँगने |
जीवन काँटों की सेज पर खिला एक फूल है
जहाँ दोस्त तो दुश्मन भी अनेक है |
जहाँ मौत अपनो को काँटे चुबा रही है ,
और गैरो की राह फूल बिछा रही है |
आँखे बंद कर यह सोचती हूँ,
क्यूँ डरूँ मैं भला मौत से?
हमसफर मौत ने मुझे कभी तो चुनना ही था
भला कैसे यह सत्य ठुकराऊ मैं?
कुंठित है मन इस बात से
ना जाने कितने तीर मैने चुबोये,
आज आख़री पड़ाव पर खड़े
उनसे क्षमा भी माँग ना सके |
वो देखो… मौत मुस्कुराती सी,
सीने से लगाने मुझे, अपनी बाह है फैलाती |
निरुत्तर सी मैं खड़ी,
छोड़ अपनो का हाथ, मौत मुझे आज है थामती |
सन्नाटा फैला चारो ओर है ,
नम कुछ आँखें, खुश कुछ लोग है|
मैं दुनिया छोड़ जा रही हूँ,
मौत के बाद एक नये संसार ढूढ़ने ||
पर अभी हुमारे दरमियाँ कुछ दूरी है|
यह फ़ासला किसी के जीने की आस है
लेकिन हमें फ़ासले मिटने का एहसास है |
क्या भला कोई ऐसे ख्वाब भी बोता है ?
मिट्टी का शरीर मिट्टी से मिलने को रोता है !
काया जिसने यह बनाई थी,
उसी काया को मिटाने, मौत आज आई है |
देखो आज इन प्रियजनों को,
ख़ौफ़ का साया बिछाया है मौत ने|
वक़्त थम जाने को बेकरार मौत वो
नास्तिक भी आज ईश्वार से दो घड़ी माँगने |
जीवन काँटों की सेज पर खिला एक फूल है
जहाँ दोस्त तो दुश्मन भी अनेक है |
जहाँ मौत अपनो को काँटे चुबा रही है ,
और गैरो की राह फूल बिछा रही है |
आँखे बंद कर यह सोचती हूँ,
क्यूँ डरूँ मैं भला मौत से?
हमसफर मौत ने मुझे कभी तो चुनना ही था
भला कैसे यह सत्य ठुकराऊ मैं?
कुंठित है मन इस बात से
ना जाने कितने तीर मैने चुबोये,
आज आख़री पड़ाव पर खड़े
उनसे क्षमा भी माँग ना सके |
वो देखो… मौत मुस्कुराती सी,
सीने से लगाने मुझे, अपनी बाह है फैलाती |
निरुत्तर सी मैं खड़ी,
छोड़ अपनो का हाथ, मौत मुझे आज है थामती |
सन्नाटा फैला चारो ओर है ,
नम कुछ आँखें, खुश कुछ लोग है|
मैं दुनिया छोड़ जा रही हूँ,
मौत के बाद एक नये संसार ढूढ़ने ||
Wow...well written.
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