Monday, January 12, 2015

मुसाफ़िर

है ज़िंदगी की राह में
कई पड़ाव हमने तय किए,
आज यहा तो कल वहाँ
ना जाने कितने मुसाफिर हमे मिले |

कितने मुसाफिरों से हमने दिल जोड़े
कितनो के हमने दिल है तोड़े,
कितनो को हम जानते नही
और कितने हमें पहचानते नही|

जिनसे दिल जुड़े वो हमसफ़र बन गये
जिनके टूटे दिल, वो दुश्मनी कर बैठे
बाकी तो बस राह में मिलते और बिछड़ते है
कुछ याद रहते तो कुछ भूल जाते है|

आरज़ू है मेरी, कर्म अच्छा हम करे,
मुस्कराहट हम फैलाते रहे
चाहे भीड़ में हो या अकेले
भूले बिसरे मुसाफिर, याद हमे हरदम किया करे|

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