Saturday, February 4, 2017

प्यारी बेटी


है आँचल में छुपाया जिसे,
मुस्कान उसकी सुहानी है।
क्या नाम रखूँ सोचूँ आज मैं
कि नाम तेरा हो पूरे जग में।

नीर जो तेरी आँखों से बहें
है तेरे गालों पे डेरा जमाते,
मैं चूम कर उन्हें पी लेती हूँ,
है मोती तेरी आँखों के जो प्यारे।

 टिमटिमाती आँखों से देखा मुझे
सरस्वती अभी जिव्हा में विराजी नहीं,
है कुछ बात उस स्पर्श में
बिन कहे सब कुछ तू बोलती।

 वक़्त बीतने का इंतज़ार करूँ मैं
कब माँ कह कर मुझे बुलाएगी,
है मेरी छाती से लिपटी हुई
कब मेरी ऊँगली थामे पग आगे बढ़ाएगी।

लो गुज़र रहा हर पल है,
अठखेलिया तेरी मुझे सताती
परेशान तुम हरदम करती,
कितना मुझे सताती है।

अपनी बातों में मगन रहती,
मेरा कहा कहाँ मानती है
दौड़ में शामिल हो तुम,
मेरे आगे से भाग जाती है।

देखो समय की रफ़्तार को,
किताबो के बोझ तले तुम दबी जा रही हो
जो शिक्षक न सताते हो,
मेरे आक्रोश से डरी जा रही हो।

वो नन्हें कदम, नन्हीं मुस्कान अब कहाँ है,
मेरे कांधों को छू जा रही हो
उम्र हो चली मेरी है
अब मुझ में दोस्त अपना ढूंढ रही हो।

कोई बात है, खोई से तुम रहा करती हो
नई राह में, नए साथी जो पा रही हो।
काँटों से भरी इस दुनिया में , आगे बढ़ना होगा
सूझबूझ से अब हर निर्णय तुम्हें लेना होगा।

वक़्त ने पासा पलटा है
ख़ुशी जो मिली मुझे, किसी और की खुशहाली बन रही हो।
मेरे आँगन को मेहकाकर,
अब किसी और के आँगन को महकाने जा रही हो।

 काश वक़्त आज यही रुक जाए
तुम्हारी अठखेलियां मैं जी लूँ
कल की चिंता को मिटाया जाए
मैं आज इस पल को तुम्हारे साथ थोड़ा जी लूं

Saturday, January 21, 2017

गर मैं ना रहूँ

गर मैं ना रहूं, मुझे याद तुम ना करना
मेरे लौटने का इंतज़ार तुम ना करना।

है कई रास्ते हमने साथ ते किए
गुज़रे लम्हों को याद तुम ना करना।

जीने का मज़ा तो आज में है
जो रहा नहीं, उसके लिए नीर तुम ना बहाना।

गुज़री दास्ताँ बदली नहीं जाती
बेवजह आंसू किसी को तुम ना दिलाना।
कुछ ऐसा करो, मुस्कराहट हर तरफ बिखेरो
खुश हर किसी को रखा करो।
यूँही किसी को ग़म में ना डुबोना
गर जाने के बाद पछतावा तुम ना करना।

जाना तो सभी को एक दिन है
किसी के आज को आबाद तुम ज़रूर करना।
यादें गुज़रे वक़्त को लौटा नहीं सकती
किसी के जनाज़े को खुशनुमा नहीं कर सकती।
ज़िन्दगी एक फूल है, बंजर उसे तुम न करना।
गर मैं न रहूँ, मुझे याद तुम ना करना।

Monday, January 12, 2015

मुसाफ़िर

है ज़िंदगी की राह में
कई पड़ाव हमने तय किए,
आज यहा तो कल वहाँ
ना जाने कितने मुसाफिर हमे मिले |

कितने मुसाफिरों से हमने दिल जोड़े
कितनो के हमने दिल है तोड़े,
कितनो को हम जानते नही
और कितने हमें पहचानते नही|

जिनसे दिल जुड़े वो हमसफ़र बन गये
जिनके टूटे दिल, वो दुश्मनी कर बैठे
बाकी तो बस राह में मिलते और बिछड़ते है
कुछ याद रहते तो कुछ भूल जाते है|

आरज़ू है मेरी, कर्म अच्छा हम करे,
मुस्कराहट हम फैलाते रहे
चाहे भीड़ में हो या अकेले
भूले बिसरे मुसाफिर, याद हमे हरदम किया करे|

Monday, December 22, 2014

मौत

मौत से मुलाक़ात ज़रूरी है

पर अभी हुमारे दरमियाँ कुछ दूरी है|

यह फ़ासला किसी के जीने की आस है

लेकिन हमें फ़ासले मिटने का एहसास है |



क्या भला कोई ऐसे ख्वाब भी बोता है ?

मिट्टी का शरीर मिट्टी से मिलने को रोता है !

काया जिसने यह बनाई थी,

उसी काया को मिटाने, मौत आज आई है |



देखो आज इन प्रियजनों को,

ख़ौफ़ का साया बिछाया है मौत ने|

वक़्त थम जाने को बेकरार मौत वो

नास्तिक भी आज ईश्वार से  दो घड़ी माँगने |



जीवन काँटों की सेज पर खिला एक फूल है

जहाँ दोस्त तो दुश्मन भी अनेक है |

जहाँ मौत अपनो को काँटे चुबा रही है ,

और गैरो की राह फूल बिछा रही है |



आँखे बंद कर यह सोचती हूँ,

क्यूँ डरूँ मैं भला मौत से?

हमसफर मौत ने मुझे कभी तो चुनना ही था

भला कैसे यह सत्य ठुकराऊ मैं?



कुंठित है मन इस बात से

ना जाने कितने तीर मैने चुबोये,

आज आख़री पड़ाव पर खड़े

उनसे क्षमा भी माँग ना सके |



वो देखो… मौत मुस्कुराती सी,

सीने से लगाने मुझे, अपनी बाह है फैलाती |

निरुत्तर सी मैं खड़ी,

छोड़ अपनो का हाथ, मौत मुझे आज है थामती |



सन्नाटा फैला चारो ओर है ,

नम कुछ आँखें, खुश कुछ लोग है|

मैं दुनिया छोड़ जा रही हूँ,

मौत के बाद एक नये संसार ढूढ़ने ||

Saturday, June 14, 2014


है दर्द सीने में छुपा, कभी तो उसको टटोलिए
है चार दिन की ज़िंदगी, अब तो मीठे बोल बोलिए।

राह हम ने चुनी थी,साथ उस पे चल दिए
चार पल तो साथ थे, अब बदल गये रास्ते।
है साथ तो जीना मगर, फिर क्यूँ भला मुहं फेरिए,
है चार दिन की ज़िंदगी, फिर साथ हमारे चल दीजिए।

महक रहा आँगन है आज, कली नई जो खिल गई,
उसकी हर मुस्कान, हमारे जीने का सबब बन गई।
कली जो फूल बन गयी, काँटे भी साथ लग गये,
दर्द काँटों का झेलिए, कली से मुहँ ना मोड़िये।

दोस्ती की राह पर, चलना सभी है जानते,
वक़्त आने पर यार को, अक्सर हम है भूल जाते।
जनाज़ा सभी का निकलना है, चार काँधे खोजिये
वक़्त आने पर लगे, तो दोस्त पे जान अपनी दीजिए।

फैला चारों तरफ धुआँ सा है, गुम हम उसमें हो लिए
गमगीन ज़िंदगी हुई, बेरंग नज़ारे हो गये
निकल बाहर इस धुएँ से तू, जंग का एलान कीजिए
बाहार फिर छा जाएगी, बस आप हिम्मत ना हारिए।

मौत आनी ज़रूर है, फिर क्यूँ उस से डर रहे,
जाने से पहले हो सके, तो कुछ काम ऐसा कीजिए।
याद अपने किया करे, परायें भी रो पड़े,
ज़िंदगी के रहते मुस्कान सबको दीजिए।
है चार दिन की ज़िंदगी, सदैव मीठे बोल बोलिए।।

Friday, June 6, 2014

क्या होती है आशा

                                                         सन 2005 की रचना

क्या होती है आशा?
कोई तो बता दे मुझे उसकी परिभाषा।
फूल को माली से आशा,
दे उसे पानी इतना,
कि खिलकर दूर करे वो लोगों की निराशा।

क्या होती है आशा?
दोस्तों को दोस्तों से आशा,
हर कदम पर साथ दे,
हर राह पर हमें जो हंसाता।

क्या होती है आशा?
माँ बाप को बच्चों से है आशा।
पढ़े लिखें बड़े बने,
उनके बूढ़े कंधों को जवाँ कांधों की अभिलाषा।

क्या होती है आशा?
दिए को बाती से आशा।
कि वो जले तपे,
संसार को रोशनी दे, तम को दूर करें।

क्या होती है आशा?
प्यार को प्यार की आशा,
दिल को धड़कने की आशा,
फूल को खिलने की आशा,
ख़ुशी को बसने की आशा।

हाँ, ये होती है आशा,
ज़िन्दगी को ज़िन्दगी से है आशा,
पतझड़ को बहार की आशा,
अन्धकार को रौशनी से है आशा,
प्यासे को कुऐं की आशा,
आज को कल से है आशा।

क्या होता ना होती अगर ये आशा?
चारों तरफ़ होती सिर्फ निराशा।
कोशिश करें पूरी करें हम हर आशा,
क्यूंकि इंसान को इंसान से है आशा।
आशा है इंसानियत की, प्यार की, अपनेपन की।
जी हाँ, यही है मेरी आशा।।

Thursday, June 5, 2014

क्या खोया क्या पाया

                                            दिनांक- 17 अक्टूबर 2013


यादों के झरोखों में झाँक कर देखा
बीते पलों को टटोल कर देखा
खाली वक़्त में बीते समय का हिसाब लगाया
ना जाने क्या छोड़ा, क्या पाया


कभी यारों के झुंड में शामिल थे
हर दिन का आना जाना था
जगह बदली, वक़्त बदला
आज उस झुंड का नामो निशान नही।
यारों को छोड़ा, नये साथियों को पाया।।


कभी उस जगह पे खेला करते थे
वहाँ टहला करते लोगों को निहारते थे
जो अपनी सी लगती थी,आज उस जगह पे अपने निशाँ नहीं।
उस जगह को छोड़ा, एक नया रास्ता अपनाया।


कभी चिट्ठी लिख करके, हाल पूछते थे
अपनो का पता लिख लिया करते थे
एक बार मिलने की आस को जगा कर रखते थे
आज उस कलम काग़ज़ का, उस पते का पता नही
उस कलम को छोड़ा, नई तक्निकिओं को अपनाया।


वक़्त आगे बढ़ना सिखाता हैं, फैसला हम करते है
पीछे रह जाती है यादें, जिन्हे भुला हम देते है
फ़ुर्सत में बैठे हो अगर, तो याद गुज़रे वक़्त को करते है
व्यस्त हो जीवन में तो, खुद को ही भुला देते है ।।