Saturday, June 14, 2014


है दर्द सीने में छुपा, कभी तो उसको टटोलिए
है चार दिन की ज़िंदगी, अब तो मीठे बोल बोलिए।

राह हम ने चुनी थी,साथ उस पे चल दिए
चार पल तो साथ थे, अब बदल गये रास्ते।
है साथ तो जीना मगर, फिर क्यूँ भला मुहं फेरिए,
है चार दिन की ज़िंदगी, फिर साथ हमारे चल दीजिए।

महक रहा आँगन है आज, कली नई जो खिल गई,
उसकी हर मुस्कान, हमारे जीने का सबब बन गई।
कली जो फूल बन गयी, काँटे भी साथ लग गये,
दर्द काँटों का झेलिए, कली से मुहँ ना मोड़िये।

दोस्ती की राह पर, चलना सभी है जानते,
वक़्त आने पर यार को, अक्सर हम है भूल जाते।
जनाज़ा सभी का निकलना है, चार काँधे खोजिये
वक़्त आने पर लगे, तो दोस्त पे जान अपनी दीजिए।

फैला चारों तरफ धुआँ सा है, गुम हम उसमें हो लिए
गमगीन ज़िंदगी हुई, बेरंग नज़ारे हो गये
निकल बाहर इस धुएँ से तू, जंग का एलान कीजिए
बाहार फिर छा जाएगी, बस आप हिम्मत ना हारिए।

मौत आनी ज़रूर है, फिर क्यूँ उस से डर रहे,
जाने से पहले हो सके, तो कुछ काम ऐसा कीजिए।
याद अपने किया करे, परायें भी रो पड़े,
ज़िंदगी के रहते मुस्कान सबको दीजिए।
है चार दिन की ज़िंदगी, सदैव मीठे बोल बोलिए।।

Friday, June 6, 2014

क्या होती है आशा

                                                         सन 2005 की रचना

क्या होती है आशा?
कोई तो बता दे मुझे उसकी परिभाषा।
फूल को माली से आशा,
दे उसे पानी इतना,
कि खिलकर दूर करे वो लोगों की निराशा।

क्या होती है आशा?
दोस्तों को दोस्तों से आशा,
हर कदम पर साथ दे,
हर राह पर हमें जो हंसाता।

क्या होती है आशा?
माँ बाप को बच्चों से है आशा।
पढ़े लिखें बड़े बने,
उनके बूढ़े कंधों को जवाँ कांधों की अभिलाषा।

क्या होती है आशा?
दिए को बाती से आशा।
कि वो जले तपे,
संसार को रोशनी दे, तम को दूर करें।

क्या होती है आशा?
प्यार को प्यार की आशा,
दिल को धड़कने की आशा,
फूल को खिलने की आशा,
ख़ुशी को बसने की आशा।

हाँ, ये होती है आशा,
ज़िन्दगी को ज़िन्दगी से है आशा,
पतझड़ को बहार की आशा,
अन्धकार को रौशनी से है आशा,
प्यासे को कुऐं की आशा,
आज को कल से है आशा।

क्या होता ना होती अगर ये आशा?
चारों तरफ़ होती सिर्फ निराशा।
कोशिश करें पूरी करें हम हर आशा,
क्यूंकि इंसान को इंसान से है आशा।
आशा है इंसानियत की, प्यार की, अपनेपन की।
जी हाँ, यही है मेरी आशा।।

Thursday, June 5, 2014

क्या खोया क्या पाया

                                            दिनांक- 17 अक्टूबर 2013


यादों के झरोखों में झाँक कर देखा
बीते पलों को टटोल कर देखा
खाली वक़्त में बीते समय का हिसाब लगाया
ना जाने क्या छोड़ा, क्या पाया


कभी यारों के झुंड में शामिल थे
हर दिन का आना जाना था
जगह बदली, वक़्त बदला
आज उस झुंड का नामो निशान नही।
यारों को छोड़ा, नये साथियों को पाया।।


कभी उस जगह पे खेला करते थे
वहाँ टहला करते लोगों को निहारते थे
जो अपनी सी लगती थी,आज उस जगह पे अपने निशाँ नहीं।
उस जगह को छोड़ा, एक नया रास्ता अपनाया।


कभी चिट्ठी लिख करके, हाल पूछते थे
अपनो का पता लिख लिया करते थे
एक बार मिलने की आस को जगा कर रखते थे
आज उस कलम काग़ज़ का, उस पते का पता नही
उस कलम को छोड़ा, नई तक्निकिओं को अपनाया।


वक़्त आगे बढ़ना सिखाता हैं, फैसला हम करते है
पीछे रह जाती है यादें, जिन्हे भुला हम देते है
फ़ुर्सत में बैठे हो अगर, तो याद गुज़रे वक़्त को करते है
व्यस्त हो जीवन में तो, खुद को ही भुला देते है ।।

Tuesday, June 3, 2014

कोई मेरे दिल से पूछे,पाकर खोने का ग़म क्या होता है
कोई दिए से पूछे, जलकर बुझ जाने का ग़म क्या होता है
रोशन कर दुनिया, खुद जल जाने का ग़म क्या होता है
कोई मैख़ाने से पूछे, पैमाने से छलकने का ग़म क्या होता है
कोई शमा से पूछे, परवाने के जल जाने का ग़म क्या होता है।

हम किसी से क्या पूछे, कोई पूछने का वक़्त भी नहीं देता
जिंदगी रेत की तरह फ़िसल जाती है हाथों से
और कोई हमें सांस लेने भी नहीं देता।
न जाने किस दल दल में फंसे है,
कि जालिम ज़माना हमे गिला करने भी नहीं देता।

थक जाते है कठिनाइयों से लड़ते लड़ते
पर न जाने क्यों, कोई अजनबी मदद करता है
अब अँधेरे में भी दिखाई देता है।
अब गिला क्या करे, तू गिला करने भी नहीं देता
चाहते तो है की मौत का दामन थाम ले,
पर तू है की मरने भी नहीं देता।

ऐ खुदा मेरे,ना दे ख़ुशी हमें तो कोई ग़म नहीं
पर याद रख, ये आँखें नाम ना हो कभी
माना तेरे चाहने वाले है कई
पर इस फ़क़ीर के लिए तेरी चाहत कम न हो कभी।।

                                                          2009 की रचना....